शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2011

स्मृतियाँ : स्वर्गीय रतनलाल जी सिंघानिया ,

अनन्त पथगामी
स्वर्गीय रतनलाल जी सिंहानिया
जन्म : १३  जुलाई १९२१
प्रयाण :   अगस्त २००६

                  पिता:आदरणीय लक्ष्मीनारायण जी सिंहानिया         
माता:मैना देर्वी  दुर्गा देवी

नमन!
यह शब्द एक एहसास बनकर अनायस ही ह्दय की गहराई से निकल पडा है। जिस प्रकार हर मनुष्य का अपना एक आभा मण्डल होता है. सिंहानिया जी का आभा मंडल. उनके अन्तर का तेज़ इतना सशक्त व्यापक था कि जाने कितनी कितनी बार कितनों की अन्तरात्मा को स्पर्श कर जाता था। 
कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं. जो औरों के लिए व्यक्तित्व बन जाते हैं।सिंहानिया जी एक ऐसे सिद्धान्तवादी इन्सान थे, जिनके व्यक्तित्व में विचारों की स्थिरता थी. उसूलों की सशक्तता थी. स्वभाव की कर्मठता थी. चलने को अनुशासनबद्धता थी और अंतिम क्षण तक बुलंद हौंसला था।
तभी तो जीवन की पगडंडी पर चलते हुए. अपनी चिर यात्रा में ईश्वर की ओर नजर उठाए. दबे पांव ऐसे चले गए कि लोग सोचते रह गएयूं चले गए आप जहां से कुछ तो आभास  दिया होता।

यह सभी गुण एक ही इन्सान में जल्दी नहीं मिलते।उनके व्यक्तित्व में जो सबसे अहम् बात थी. वह थी उनकी हर व्यक्ति के साथ सह्दयता।यह और बात है कि वे अपने सिद्धान्त पर इतने अटल रहे कि उन्होंने कभी समझौता नहीं किया. परन्तु मन से प्रत्येक व्यक्ति के लिए वे सहज थे।शायद इसी लिए जीवन की अंतिम बेला में ईश्वर ने उनका साथ ऐसे दिया।

जिस प्रकार उन्होंने खेल जगत से राज्य की युवा पीढि को जोडा. यह पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र के साथ साथ विशेषकर राजस्थानी समाज के लिए. एक अत्यन्त गौरव की बात है कि उनके समाज के एक कर्मठ व्यक्ति ने अदम्य उत्साह के साथ सारी चुनैतियों को स्वीकार करते हुए. राज्य की युवा पीढि के स्वस्थ वर्तमान और मजबूत भविष्य के लिए. खेल जगत में एक नई शुरूआत करते हुए फुटबॉल एसोसिएसन की स्थापना रखी और लम्बे समय तक सचिव अध्यक्ष पद पर रहकर उसे सुदृढता प्रदान की।

क्योंकि सिंहानिया जी का ऐसा मानना था कि खेल एक मनोरंजन नहीं है. बल्कि युवा पीढि के लिए एक सार्थक पृष्टभूमि है. जो उनके स्वस्थ. उत्साहित. कुंठारहित जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक है। मेघालय सहित पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र की युवा पीढि सिंहानिया जी के इस योगदान के लिए सदैव सदैव आभारी रहेगी।

2003 की वह शाम जबगितालीद्वारा आदरणीय रतनलाल जी सिंहानिया को नमन! यह शब्द एक एहसास बनकर अनायस ही ह्दय की गहराई से निकल पडा है। जिस प्रकार हर मनुष्य का अपना एक आभा मण्डल होता है. सिंहानिया जी का आभा मंडल. उनके अन्तर का तेज़ इतना सशक्त व्यापक था कि जाने कितनी कितनी बार कितनों की अन्तरात्मा को स्पर्श कर जाता था। कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं. जो औरों के लिए व्यक्तित्व बन जाते हैं।सिंहानिया जी एक ऐसे सिद्धान्तवादी इन्सान . जिनके व्यक्तित्व में विचारों की स्थिरता थी. उसूलों की सशक्तता थी. स्वभाव की कर्मठता थी. चलने को अनुशासनबद्धता थी और अंतिम क्षण तक बुलंद हौंसला था।तभी तो जीवन की पगडंडी पर चलते हुए. अपनी चिर यात्रा में ईश्वर की ओर नजर उठाए. दबे पांव ऐसे चले गए कि लोग सोचते रह गएयूं चले गए आप जहां से कुछ तो आभास  दिया होता।
यह सभी गुण एक ही इन्सान में जल्दी नहीं मिलते।उनके व्यक्तित्व में जो सबसे अहम् बात थी. वह थी उनकी हर व्यक्ति के साथ सह्दयता।यह और बात है कि वे अपने सिद्धान्त पर इतने अटल रहे कि उन्होंने कभी समझौता नहीं किया. परन्तु मन से प्रत्येक व्यक्ति के लिए वे सहज थे।शायद इसी लिए जीवन की अंतिम बेला में ईश्वर ने उनका साथ ऐसे दिया।
जिस प्रकार उन्होंने खेल जगत से राज्य की युवा पीढि को जोडा. यह पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र के साथ साथ विशेषकर राजस्थानी समाज के लिए. एक अत्यन्त गौरव की बात है कि उनके समाज के एक कर्मठ व्यक्ति ने अदम्य उत्साह के साथ सारी चुनैतियों को स्वीकार करते हुए. राज्य की युवा पीढि के स्वस्थ वर्तमान और मजबूत भविष्य के लिए. खेल जगत में एक नई शुरूआत करते हुए फुटबॉल एसोसिएसन की स्थापना रखी और लम्बे समय तक सचिव अध्यक्ष पद पर रहकर उसे सुदृढता प्रदान की।
क्योंकि सिंहानिया जी का ऐसा मानना था कि खेल एक मनोरंजन नहीं है. बल्कि युवा पीढि के लिए एक सार्थक पृष्टभूमि है. जो उनके स्वस्थ. उत्साहित. कुंठारहित जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक है।मेघालय सहित पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र की युवा पीढि सिंहानिया जी के इस योगदान के लिए सदैव सदैव आभारी रहेगी।
2003 की वह शाम जबगितालीद्वारा आदरणीय रतनलाल जी सिंहानिया को प्रदिए नमन! यह शब्द एक एहसास बनकर अनायस ही ह्दय की गहराई से निकल पडा है। जिस प्रकार हर मनुष्य का अपना एक आभा मण्डल होता है. सिंहानिया जी का आभा मंडल. उनके अन्तर का तेज़ इतना सशक्त व्यापक था कि जाने कितनी कितनी बार कितनों की अन्तरात्मा को स्पर्श कर जाता था। कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं. जो औरों के लिए व्यक्तित्व बन जाते हैं।सिंहानिया जी एक ऐसे सिद्धान्तवादी इन्सान . जिनके व्यक्तित्व में विचारों की स्थिरता थी. उसूलों की सशक्तता थी. स्वभाव की कर्मठता थी. चलने को अनुशासनबद्धता थी और अंतिम क्षण तक बुलंद हौंसला था।तभी तो जीवन की पगडंडी पर चलते हुए. अपनी चिर यात्रा में ईश्वर की ओर नजर उठाए. दबे पांव ऐसे चले गए कि लोग सोचते रह गएयूं चले गए आप जहां से कुछ तो आभास  दिया होता।
यह सभी गुण एक ही इन्सान में जल्दी नहीं मिलते।उनके व्यक्तित्व में जो सबसे अहम् बात थी. वह थी उनकी हर व्यक्ति के साथ सह्दयता।यह और बात है कि वे अपने सिद्धान्त पर इतने अटल रहे कि उन्होंने कभी समझौता नहीं किया. परन्तु मन से प्रत्येक व्यक्ति के लिए वे सहज थे।शायद इसी लिए जीवन की अंतिम बेला में ईश्वर ने उनका साथ ऐसे दिया।
जिस प्रकार उन्होंने खेल जगत से राज्य की युवा पीढि को जोडा. यह पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र के साथ साथ विशेषकर राजस्थानी समाज के लिए. एक अत्यन्त गौरव की बात है कि उनके समाज के एक कर्मठ व्यक्ति ने अदम्य उत्साह के साथ सारी चुनैतियों को स्वीकार करते हुए. राज्य की युवा पीढि के स्वस्थ वर्तमान और मजबूत भविष्य के लिए. खेल जगत में एक नई शुरूआत करते हुए फुटबॉल एसोसिएसन की स्थापना रखी और लम्बे समय तक सचिव अध्यक्ष पद पर रहकर उसे सुदृढता प्रदान की।

क्योंकि सिंहानिया जी का ऐसा मानना था कि खेल एक मनोरंजन नहीं है. बल्कि युवा पीढि के लिए एक सार्थक पृष्टभूमि है. जो उनके स्वस्थ. उत्साहित. कुंठारहित जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक है।मेघालय सहित पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र की युवा पीढि सिंहानिया जी के इस योगदान के लिए सदैव सदैव आभारी रहेगी।

2003 की वह शाम जबगितालीद्वारा आदरणीय रतनलाल जी सिंघानिया  को  " प्राइड ऑफ़ शिलांग "   अवार्ड से नवाजा गया था. सौभाग्य से मुझे भी वहां जाने का अवसर मिला।
इस  विशिष्ट समारोह में  कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।सभी के चेहरे पर खुशी थी. उत्साह श्श्झलक रहा था कि एक राजस्थानी भाई को यह अति विशिष्ट सम्मान मिला है. ऐसे मौके पर किसी भी व्यक्ति के चेहरे पर गर्व का भाव जाता है. पर मैंने गहराई से महसूस किया कि सिंहानिया जी के चेहरे पर कोई गर्व की भावना नहीं थी. बल्कि सदा रहने वाली वहीं साधारण सी मुस्कान थी।उनकी सहाजता और सरलता देख मन उसी क्षण उन्हें नमन कर उठा था।

सिंहानिया परिवार के सभी सदस्यों के प्रति  दिल से आभारी हूंजिनके  विशिष्ट सहयोग से श्रद्धेय रतनलाल जी सिंहानिया की अविस्मरणीय स्मृतियों को तथा  विशिष्ट संस्थाओं एवं सहयोगियों की भावमयी श्रद्धांजलि को  इसनमनपुस्तिका  में संजोया गया है।

जिस प्रकार कभी भी कोई कार्य पूर्ण नहीं होता. उसी प्रकार श्रद्धांजलि रूपी इसनमनपुस्तिका  को पूर्ण नहीं कहा जा सकता और सम्भव भी नहीं है।क्योंकि सिंहानिया जी के जिस प्रकार के भाव और विचार . उसी प्रकार अनगिनत लोग उनसे भावनात्मक रूप से जुडे थे। किसी ने सत्य ही कहा है कि आदमी के जाने के बाद ही उसकी सही पहचान होती है।अतः ऐसे अनगिनत लोंगो की भावनाओं को शब्दों में पिरोना सम्भव नहीं हो पाया।
अनन्त पथ की उनकी चिरयात्रा पर ईश्वर से एकान्तिक प्रार्थना है कि उनकी धर्मपत्नी श्रीमती मोहिनी देवी एवं उनके  परिवार के प्रत्येक सदस्य को असहनीय पीडा की घडी में ढांढस धैर्य प्रदान करें तथा सिंहानिया जी की आत्मसत्ता को चिर शान्ति प्राप्त हो!
माना कि दहर में रहने को आता नहीं कोई।
जैसे आप गए वैसे भी जाता नहीं कोई।।
दुनिया में आकर जाते हैं सभी।
मौत को ऐसे गले लगाता नहीं कोई।।
समन्दर लाख समेटे लहरें अपनी।
लहरों को दिल में बसाता नहीं कोई।
     खुशियों को समाने वाले तो बहुत मिलते हैं।
 गम को दिल में समाता नहीं कोई।।  

अवार्ड से नवाजा गया था. सौभाग्य से मुझे भी वहां जाने का अवसर मिला।इस  विशिष्ट समारोह में  कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।सभी के चेहरे पर खुशी थी. उत्साह श्श्झलक रहा था कि एक राजस्थानी भाई को यह अति विशिष्ट सम्मान मिला है. ऐसे मौके पर किसी भी व्यक्ति के चेहरे पर गर्व का भाव जाता है. पर मैंने गहराई से महसूस किया कि सिंहानिया जी के चेहरे पर कोई गर्व की भावना नहीं थी. बल्कि सदा रहने वाली वहीं साधारण सी मुस्कान थी।उनकी सहाजता और सरलता देख मन उसी क्षण उन्हें नमन कर उठा था।
सिंहानिया परिवार के सभी सदस्यों के प्रति  दिल से आभारी हूंजिनके  विशिष्ट सहयोग से श्रद्धेय रतनलाल जी सिंहानिया की अविस्मरणीय स्मृतियों को तथा  विशिष्ट संस्थाओं एवं सहयोगियों की भावमयी श्रद्धांजलि को  इसनमनपुस्तिका  में संजोया गया है।
जिस प्रकार कभी भी कोई कार्य पूर्ण नहीं होता. उसी प्रकार श्रद्धांजलि रूपी इसनमनपुस्तिका  को पूर्ण नहीं कहा जा सकता और सम्भव भी नहीं है।क्योंकि सिंहानिया जी के जिस प्रकार के भाव और विचार . उसी प्रकार अनगिनत लोग उनसे भावनात्मक रूप से जुडे थे। किसी ने सत्य ही कहा है कि आदमी के जाने के बाद ही उसकी सही पहचान होती है।अतः ऐसे अनगिनत लोंगो की भावनाओं को शब्दों में पिरोना सम्भव नहीं हो पाया।
अनन्त पथ की उनकी चिरयात्रा पर ईश्वर से एकान्तिक प्रार्थना है कि उनकी धर्मपत्नी श्रीमती मोहिनी देवी एवं उनके  परिवार के प्रत्येक सदस्य को असहनीय पीडा की घडी में ढांढस धैर्य प्रदान करें तथा सिंहानिया जी की आत्मसत्ता को चिर शान्ति प्राप्त हो!
जब हम अपनों के साथ होते हैं. तो कभी यह लगता ही नहीं कि उनसे बिछडना भी पड सकता है।आज जब बाबूजी नहीं है. तब ऐसा लगता है मानो हम सभी भाई बहनों की जो एक धूरी थी. जो एक आत्म संबल र्था वह हमसे छूट गया है।अन्दर बाहर से हम जो इतनी दृढता से चला करते थे. वह आत्मबल अब हमसे छूट गया।
बाबूजी का फिर कभी आने के लिए. इस तरह अनायस ही उठकर चले जानाऌ कहीं से भी आत्मा का स्वीकार नहीं हो पा रहा।

उनको श्रद्धांजलि देने के लिए हमारे पास सिर्फ अतीत की यादें है. कोई शब्द नहीं।
बस ईश्वर से यही प्रार्थना है कि वे पूज्यनीय मां मोहिनी देवी हम सभी भाई बहनों को इतनी शक्ति दें कि हम उनके दिखाए मार्गदर्शन पर दृढता के साथ चल पाएं।

किसी भी संतान के लिए अपने ईश्वर तुल्य पिता के जीवन के विषय में लिख पाना इतना सरल नहीं।समझ नहीं पाती किस छोड से उनके जीवन को देखूं ? क्या पुत्री बनकर! जबकि उन्होंने कभी भी मात्र पुत्री समझकर हमें पाला ही नहीं।उनके लिए उनकी प्रत्येक संतान उनके बच्चों के साथ साथ उनकी मित्र सहयोगी थी।

बाबू जी का जन्म 13 जुलाई 1921 को शिलांग में हुआ।इनकी प्रारम्भिक शिक्षा  class - 6 तक रायबहादुर अनूपचन्द हाई स्कूल तथा इसके पश्चात दसवी कक्षा तक  Govt. High School, Mawkhar में हुई। उस समय भारत में अंग्रजों का शासन था और शिलांग उस समय पूर्वोत्तर का एक प्रमुख व्यवसायी केन्द्र बन गया था।बाबू जी शिक्षा पूर्ण होते ही दादा जी स्व। लक्ष्मीनारायण जी सिंहानिया के साथ व्यापार में हाथ बंटाने  लगे. जिनका आलू कपडे का होलसेल का व्यापार था।व्यापार को लेकर बाबूजी को निरन्तर अंग्रज अफसरों से मिलना जुलना पडता था. अपनी मिलनसारिता के कारण उनका बहुत छोटी अवस्था में ही काफी नामी गिरामी लोंगो के साथ आन्तरिक लगाव बन गया था।

समय के साथ भारत आजाद हुआ।पार्टिशन के बाद वे शैला से कलकत्ता तक हवाई जहाज द्वारा संतरों की सप्लाई किया करते थे।

बाबूजी को घोडों से अति लगाव था।शिलांग पोलो ग्राउन्ड रेस कोर्स में हर शनिवार  को वे रेस में जाया करते थे।यह उनका शौक ही था. जिसके लिए उन्होंने ढाका से ह्यजो उस समय पाकिस्तान में था.

दो घोडे विशेष तौर से मंगवाए और शिलांग के जाने माने पंडित हनुमान जी से उन घोडों का नामकरण करवाया।हनुमान पंडित जी ने उनके दोनो घोडों का नाम क्रमशटर्की ब्वाय एवं मार्निंग रोज" रखा. जिसे वे प्यार सेभाई जानकहा करते।

उन दिनों यहां के गवर्नरसर सारदुल्लाहुआ करते थे जिनका बाबूजी से इतना लगाव हो गया था कि  वे अपने पुत्र सामान ही उन्हें प्यार करते।यहां तक उन्होंने बाबूजी का विवाह अपने बंगले में करवाया।
घोडों के रेस के अलावा उन्हें फुटबॉल और क्रिकेट मैच में विशेष रूचि थी।वे नियम से फुटबॉल देखने जाया करते।युवा पीढि को आगे बढाने और उत्साहित करने के लिए 1945 मे  टेद्धन् छल्ुब् की उन्होंने स्थापना की और सचिव पद पर रहते हुए. क्लब को हर प्रकार से सुदृढता प्रदान की।
अपनी तमाम सफलता सामाजिक व्यापारिक दायित्वों के पश्चात भी बाबूजी अपने परिवार कुटुम्ब मित्रों के साथ मिलजुल कर रहना बहुत पसन्द था।परिवार को लेकर हंसी खुशी का माहौल रहे इस लिए वे अक्सर परिवार के छोटे बडे सभी सदस्यें को लेकर ताश खेलना पसन्द करते।

प्रत्येक रविवार को बाबूजी आदरणीय स्व। ताऊजी रामेश्वरलाल जी गोयनका के साथ उनके झालुपाडा स्थित बगीचे में अपने मित्रों और सहयोगियां के साथ चौपड खेलने जाया करते और साथ में सभी बच्चों को ले जाया करते।सभी बच्चे बहुत खुश रहते. उनकी तो पिकनिक हो जाती।

जवाहरलाल नेहरू का एक बार जब शिलांग आगमन हुआ. तो उन्हें लेने गवर्नर हाऊस में तीन गाडियां गई।उनमें से एक गाडी बाबूजी की भी थी।बाबूजी की गाडी तीनों गाडियों के पीछे थी।
नेहरू जी राजभवन से निकले तीनों गाडियों को देखा और बाबूजी की गाडी की तरफ बढते हुए उनकी पीठ पर हाथ रखकर बोले : “चलिए
इतनी बडी हस्ती के साथ उनका चालक बनने का सौभाग्य उन्हें प्राप्त हुआ।बाबूजी को गाडी धीमी गति से चलाते देख नेहरू जी ने कहा : “क्या आपको डर लग रहा है? घबराईए नहीं! चलाईए गाडी।

प्रत्येक रविवार को बाबूजी आदरणीय स्व। ताऊजी रामेश्वरलाल जी गोयनका के साथ उनके झालुपाडा स्थित बगीचे में अपने मित्रों और सहयोगियां के साथ चौपड खेलने जाया करते और साथ में सभी बच्चों को ले जाया करते।सभी बच्चे बहुत खुश रहते. उनकी तो पिकनिक हो जाती।

जवाहरलाल नेहरू का एक बार जब शिलांग आगमन हुआ. तो उन्हें लेने गवर्नर हाऊस में तीन गाडियां गई।उनमें से एक गाडी बाबूजी की भी थी।बाबूजी की गाडी तीनों गाडियों के पीछे थी। नेहरू जी राजभवन से निकले तीनों गाडियों को देखा और बाबूजी की गाडी की तरफ बढते हुए उनकी पीठ पर हाथ रखकर बोले : “चलिए
इतनी बडी हस्ती के साथ उनका चालक बनने का सौभाग्य उन्हें प्राप्त हुआ।बाबूजी को गाडी धीमी गति से चलाते देख नेहरू जी ने कहा : “क्या आपको डर लग रहा है? घबराईए नहीं! चलाईए गाडी।

अपने जीवन काल में शिलांग में आने वाले प्रायः सभी नेताओं से वे मिलते और अपने व्यक्तित्व से उन्हें मोह लेते।उनके सम्पर्क में आने वाले अन्य प्रमुख नेता रहे : कामराज़ फखरूदीन अली अहमद. देवकान्त बरूआ. बलराम झाखड शिवचरण माथुर राजेश पायलट।

खेलजगत के तो प्रायः सभी प्रमुख व्यक्तियों से उनका व्यक्तिगत सम्बन्ध रहा।

बाबूजी के बारे में कुछ लिखकर कागज के पन्नों में समेटना केवल मुश्किल है बल्कि असम्भव है।उनसे मिलने वाले प्रत्येक व्यक्ति उनके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना नहीं रहता।

खुशमिजाज जिन्दादिल समय के पाबन्ध अनुशासनशील सिद्धान्तवादी सफेद उजली धोती पहने गोरे तेजस्वी चेहरे वाली उनके व्यक्तित्व की छवि मानसपटल से हटती नहीं।उनकी पावन स्मृति को भूला पाना बहुत कठिन है।
                                                    
                                                                                                  
                                           
            उषा गोयनका                                                       

पुत्री : स्व: रतनलाल जी सिंहानिया
Hi Ma..
Sending you the write up..
“There are certain people in the world who demand respect and there are others for whom respect flows naturally, from within. Nanaji for me, has always been someone who falls in the later category. He’s someone I deeply respected, looked up to since childhood. My earlier memories of him, as a child, have been associated with a Tobler which he loved and made a point to share with us. His annual family picnics used to be an event to look forward to. Nanaji’s innumerrable stories and experiences of life in earlier’s times are something I distinctly remember. He was someone who took great interest in what I was pursuing, be it my MBA and now my job and was always supportive and encouraging. It’s still hard for me to believe that Nanaji’s no more with us but his values and ideals will live on with all of us.”
Love,
--Natasha Goenka
(Grand dautor-in-law : Late R.L.Singhania)

A life divine...
leading the way to the light...

It was matter of great pride and an eye opening experience to know, and be related so closely to someone like Baba. From the first time I met him his bearing, attitude and stature  were evident before he even ultered a word. He stood out among men...a colossal being, encompassing the best of humanity. To know Baba was to know the better side of life, the finer facets of all that is good in this world...and how a man with morals and an un shakeable code of ethics can direct and shape the future of generations to come.



Warm Regards
Abhimanyu
(Grandson-in-law : Late R.L.Singhania)
Nana
 you are special.
Your love knows no bounds.
My life takes on a special warmth
whenever I think of you.
You think I’m cute and talented
and maybe, even wise.
But I know that’s because
all grandparents
see through loving eyes.
Every day with you was precious.
I’m so grateful for the time.
Of all the grandparents in the world
I’m thankful that you’re mine.

--- Advitiya ---
(Grand son-in-law : Late R.L.Singhania)
A Father, A Husband, A Grandfather
so many beloved things
now a graceful angel,spreading
angelic wings.

He is more then the moon, the stars
the sky, He’s the shape of a dove,
the gleam in a child’s eye.

He’s a scripture in the Geeta,
He’s a dimond in a ring, He’s our
shelter from the storm, the melody
we sing.

He seems so far away, when He could
never be so near, He’s the guiding hand we
follow, He’s our courage, when we fear.

He is now the truth we search for, embracing
what is real, he is raw emotion, he’s
the love we feel.

He’s the peace within our souls, the smile
on our face, our everything, our all,
He’s our AMAZING BABA.

“We will miss you always but we know
that you are always there with us. You are
our love, our strength, our guiding star, our
BABA, God blessed us by making us your
Grandchildren, We love you.”

----Nicky & Abhimanyu---
(Grand Dautor & grand son-in -law Late R.L.Singhania)




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