शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2011

महाराजा अग्रसेन जी की जीवनी


आज महाराजा अग्रसेन की जयंती हैं। आप सबके सान्निध्य में. शिलांग अग्रवाल समिति द्वारा आज हम यहां एक छोटा आयोजन करने जा रहे हैं।
महाराजा अग्रसेन केवल अग्रवालो के कुल प्रर्वतक ही नही थे. अपितु महान् लोकनायक, अर्थनायक, सच्चे पथ प्रदर्शक  एवं विश्व बंन्धूत्व के प्रतीक थे।
अग्रवाल शिरोमणि महाराजा अग्रसेन जी का स्मरण करना. गंगाजी में स्नान करने के समान ही है।
भविष्य पुराण में इनका इतिहास मौजुद है। यहां हम बहुत थोडे शब्दों में. उनके विषय में कुछ कहने जा रहे हैं।
महाराजा अग्रसेन अग्रवाल जाति के पितामह थे। वे समाजवाद के प्रर्वतक,  रामराज्य के समर्थक एवं महादानी थे। "सर्वजन हिताय–सर्वजन सुखायः"  की उनकी महान् नीति युग युगों तक याद की जाएगी।
महाराज अग्रसेन का जन्म मर्यादा पुरुषोतम भगवान श्रीराम की चौंतीसवी पीढ़ी में. सूर्यवशीं क्षत्रिय कुल के राजा बल्लभसेन के घर में. द्वापर के अन्तिमकाल और कलियुग के प्रारम्भ में. आज से 51338 वर्ष पुर्व हुआ था।उनका विवाह नागराज कुमुट की कन्या 'माधवी' के के साथ हुआ था।
एक बार उनके राज्य में सूखा पड़ गया। जनता में त्राहि–त्राहि मच गई। प्रजा के कष्ट निवारण के लिए. राजा अग्रसेन ने अपने आराध्य देव शिव की उपासना की।
उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने. अग्रसेन जी को वरदान दिया जिससे प्रतापगढ़ में सुख–समृद्धि एवं खुशहाली लौटाई।
भगवान शिव की ही प्रेरणा से. राज्य में धन–संपदा और वैभव की प्राप्ति के लिए महाराजा अग्रसेन ने महालक्ष्मी की घोर तपस्या की और उनको प्रसन्न किया।
उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर महा लक्ष्मी नें उन्हें दर्शन दिया और समस्त सिद्धियाँ,  धन – वैभव प्राप्त करने का आशीर्वाद दिया और कहा कि “अब गृहस्थ जीवन का पालन करो, अपने वंश को आगे बढ़ाओ। तुम्हारा यही वंश कालांतर में तुम्हारे नाम से जाना जाएगा और जब तक तुम्हारा वंश सदाचार पर चलेगा और महालक्ष्मी की पूजा होती रहेगी. मैं तुम्हारे वंश से कभी नहीं जाऊंगी।”
 इसी आशीर्वाद के साथ महाराज अग्रसेन ने अपने राज्य कार्य प्रारम्भ किया और महालक्ष्मी को अपनी कूलदेवी स्वीकार किया। तब से आज तक अग्रवाल समाज़ दीपावली पर महालक्ष्मी जी का पूजन. बडे ही श्रद्धा और सम्मान से करते आ रहे हैं।
महाराज अग्रसेन जी के 18 पुत्र थे। उन्होंने 18 यज्ञ किए थे। उस जमाने में यज्ञों में पशुबलि दी जाती थी। 17 यज्ञ पूर्ण हो चुके थे।  जिस समय 18वें यज्ञ में जीवित पशुओं की बलि दी जा रही थी, निरीह पशुओं के बहते रक्त को देखकर महाराज अग्रसेन के ह्दय में घृणा उत्पन्न हो गई। उन्होंने यज्ञ को बीच में ही रोक दिया।
उनके इस विरोध से तत्कालीन ब्राह्यण समाज रूष्ट हो गए और उन्हें श्राप दे दिया कि जो क्षत्रिय रक्त नहीं देख सकता. उसे क्षत्रिय बने रहने का अधिकार नहीं।
महाराज अग्रसेन ने अलौकिक साहस,  अविचल दृढ़ता. गम्भीरता, अद्भुत सहनशिलता. दुरदर्शिता, विस्तृत दृष्टिकोण का परिचय किया और ब्राह्यणों के श्राप को शिरोधार्य किया और घोषणा की कि उनके राज्य में कोई भी व्यक्ति किसी का रक्त नहीं बहाएगा. यज्ञ में पशुबलि नहीं देगा, न पशु को मारेगा,  न माँस खाएगा और राज्य का हर व्यक्ति प्राणीमात्र की रक्षा करेगा।
तभी से हम अग्रवाल वैश्य कहलाने लगे। इतना ही नहीं यज्ञ पूर्ण न होने के कारण हमारे गोत्र भी साढे सतरह ही कहलाते हैं।
महाराजा अग्रसेन ने एक रुपया और एक ईंट के आदर्श द्वारा जहाँ एक और अपने राज्य को बेकारी बेरोजगारी–निर्धनता जैसे अभिशापों से मुक्त कर वहाँ सदाचार एवं भाईचारे की गहरी नींव रखी।
उन्होने अमीर–गरीब तथा उंच–नीच के भेदभाव को समाप्त कर. सभी नागरिकों को समान अधिकार दिये। समाजवाद, लोकतन्त्र एवं विश्व बन्धूत्व का इससे बढ़िया उदाहरण पुरी दुनिया के इतिहास में कहीं देखने सुनने को नही मिलेगा। अग्रवाल समाज भारत की सभ्यता एवं संस्कृति का केन्द्र बिन्दू रहा है।
विश्व में न जाने कितनी सभ्यताएं और सस्कृंतियां पनपी और काल के गाल में समा गई। किन्तु अग्रवाल समाज अपने पितामह अग्रसेन की नीतियों पर आज भी चलने का प्रयास करता आया है।
आज भी उतने ही गर्व के साथ. अपनी दान–धर्म परोपकार की परम्पराओं के साथ–साथ ईमानदारी और कर्मठता के कारण साहित्य,  शिक्षा,  धर्म,  ज्ञान–विज्ञान,  राजनिति,  उद्योग इत्यादि कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं. जो इस समाज के योगदान से महिमा मंडित न हुआ हो।
हम यह बात गर्व से कह सकते हैं कि हमारे आदर्श पितामह महाराजा अग्रसेन समानता पर आधारित आर्थिक नीति को अपनाने वाले संसार के प्रथम सम्राट थे।
महाराज अग्रसेन ने 108 वर्षों तक राज किया। उन्होंने जिन जीवन मूल्यों को ग्रहण किया उनमें परंपरा एवं प्रयोग का संतुलित सामंजस्य दिखाई देता है। उन्होंने एक ओर हिन्दू धर्म ग्रथों में वैश्य वर्ण के लिए निर्देशित कर्मक्षेत्र को स्वीकार किया और दूसरी ओर देशकाल के परिप्रेक्ष्य में नए आदर्श स्थापित किए। उनके जीवन के मूल रूप से तीन आदर्श हैं–
•    लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था,
•    आर्थिक समरूपता एवं
•    सामाजिक समानता।
एक निश्चित आयु प्राप्त करने के बाद कुलदेवी महालक्ष्मी प्रेरणा से. आग्रेय गणराज्य का शासन अपने ज्येष्ठ पुत्र विभु के हाथों में सौंपकर तपस्या करने चले गए।
अग्रवाल का अर्थ है आगे रहने वाला,  सबका नेतृत्व करने वाला जो कि हमारे पूर्वजों ने किया,  किन्तु वर्तमान समय में आधुनिकता और पाश्चात्य की चकाचौध, स्वार्थपरक नीति, व्यस्त जीवन प्रणाली में हम कुछ गुमराह से हो रहे हैं।
हमारे सोच का दायरा अपने तक सिकुड़ कर सिमित रह गया है, सबको साथ लेकर चलने की हमारी ह्दयता विलुप्त सी हो रही है।
दिखावा. संस्कार हीनता. बडों के सम्मान में कमी. आपसी रिश्तों में तनाव इत्यादि दुर्गुण तेजी से. हमारे महान् अग्र समाज में पांव फैलाते जा रहे हैं।
शिक्षा के नाम पर सस्कारों का हनन हो रहा हैं, परम्पराएँ समाज से लुप्त होती जा रही हैं, समाज तो समाज परिवार भी सिकुड़ते जा रहे हैं।
महाराज अग्रसेन जी ने हमारे समाज के लिए जो विधान रखा था ॐ अग्रवाल समाज का जो लक्ष्य था ॐ कहीं न कहीं हम उससे बिमुख हो रहे हैं।
उनके महान् आदर्शो को याद करते हुए आज उनकी ही जयन्ती पर. हमें आत्म अवलोकन करने की जरूरत है तथा आपसी भाईचार्रा स्नेर्ह सौहाद्र्र बनाए रखने की जरूरत है।
आज भी इतिहास में. महाराज अग्रसेन परम प्रतापी, धार्मिक, सहिष्णु, समाजवाद के प्रेरक महापुरुष के रूप में उल्लेखित हैं।
अग्रवाल समाज द्वारा निर्माणित.  देश में जगह–जगह जितने भी अस्पताले, विद्यालय, बावड़ी, गौशालाएं. धर्मशालाएँ इत्आदि देखने को मिल रही हैं. वे सभी महाराज अग्रसेन जी के जीवन मूल्यों का सजीव उदाहरण हैं।
स्वहित को परे रखकर. जनहित के लिए समर्पित. ऐसी महान विभूति अपने अग्र पितामह को हमारा शत्शत् नमन

बार बार नमन

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