तेरापंथ जैन धर्म का एक अत्यंत तेजस्वी और सक्षम संप्रदाय है। आचार्य भिक्षु इसके प्रथम आचार्य थे। इसके बाद क्रमश: दस आचार्य हुए। इसे अनन्य ओजस्विता प्रदान की चतुर्थ आचार्य जयाचार्य ने और नए-नए आयामों से उन्नति के शिखर पर ले जाने का कार्य किया नौवें आचार्य श्री तुलसी ने। उन्होंने अनेक क्रांतिकारी कदम उठाकर इसे सभी जैन संप्रदायों में एक वर्चस्वी संप्रदाय बना दिया। दशवें आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने इस धर्मसंघ को विश्व क्षितिज पर प्रतिष्ठित किया और ग्यारहवें आचार्य श्री महाश्रमण इसे व्यापक फलक प्रदान कर जन-मानस पर प्रतिष्ठित कर रहे हैं। तेरापंथ का अपना संगठन है, अपना अनुशासन है, अपनी मर्यादा है। इसके प्रति संघ के सभी सदस्य सर्वात्मना समर्पित हैं। साधु–साध्वियों की व्यवस्था का संपूर्ण प्रभार आचार्य के हाथ में होता है। आचार्य भिक्षु से लेकर आज तक सभी आचार्यों ने साधु–साध्वियों के लिए विविधमुखी मर्यादाओं का निर्माण किया है। चतुर्विध धर्मसंघ अर्थात साधु-साध्वियों व श्रावक-श्राविकाओं की चर्या ही इसकी प्राणवत्ता है।
जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा का गठन -आरंभिक काल (1914-1939)
जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा एक रजिस्टर्ड संस्था है। इसकी स्थापना कार्तिक कृष्णा 14, सं 1970, तदनुसार 28 अक्टूबर 1913, मंगलवार को हुई थी। प्रारम्भ में इसका नाम जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा रखा गया था। इसके प्रथम अध्यक्ष कालूरामजी धाड़ेवा (‘चैनरूप संपतराम’ फर्म – सरदारशहर के मुनीम) चुने गए। सेक्रेटरी श्री केसरीचन्दजी कोठारी (चूरू) तथा कोषाध्यक्ष श्रीचंदजी गणेशदासजी गधैया नियुक्त हुए। पत्र–व्यव्हार का सारा कार्य मंत्री श्री कोठारी जी देखते थे। इसका प्रथम कार्यालय 148, काटन स्ट्रीट में खोला गया। अर्थ-व्यवस्था का दायित्व श्रीचंद गणेशदास (133, मनोहरदास कटरा) को सौंपा गया। पहली कार्यकारिणी में तीन पदाधिकारियों के अलावा दस व्यक्ति और थे – रावतमलजी सेठिया (सरदारशहर), फूसराजजी पटावरी (सरदारशहर) (ये बाद में मुनि बने), सौभाग्यमलजी बांठिया (जयपुर), गिरधारीलालजी बोथरा (लाडनूं), जैसराजजी कठोतिया (सुजानगढ़), जोरावरमलजी बैद (रतनगढ़), दूलिचंदजी सेठिया (लाडनूं), हजारीमलजी नाहटा, तिलोकचंदजी बुरड़ (लाडनूं), फूसराजजी दुगड़ (सरदारशहर)।
देश के विभिन्न क्षेत्रों में तेरापंथी सभाओं की स्थापना के बाद यह आवश्यक समझा गया की कलकत्ता स्थित केंद्रीय कार्यालय का नाम बदलकर महासभा कर दिया जाये। परिणामस्वरूप 30 जनवरी, 1947 को चूरू में संपन्न 34वें वार्षिक अधिवेशन में सर्वसम्मति से सभा का नाम ‘जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा’ कर दिया गया।
तेरापंथी सभा की पहली मीटिंग
28 अक्टूबर, 1913 को तेरापंथी सभा की स्थापना के बाद 2 नवम्बर 1913 को कार्यकारिणी की पहली बैठक 15, नूरमल लोहिया लेन (उस समय इसे पांचा गली कहा जाता था), कोलकाता में थानसिंह कर्मचंद (बीदासर के दुगड़) के कमरे में हुई।
तेरापंथी सभा का निजी कार्यालय
तेरापंथी सभा का कार्यालय पहले 71, क्लाइव स्ट्रीट में किराए के मकान में खोला गया था। इसके बाद सभा का कार्यालय 30/2 क्लाइव स्ट्रीट, फिर 28 स्ट्रांड रोड, 156 सुतापट्टी, 156 हरीसन रोड, 201 हरीसन रोड होते हुए अंत में अपने निजी भवन 3, पोर्चुगीज चर्च स्ट्रीट, कोलकाता – 700001 में आ गया और तबसे यहाँ कार्यरत है।
ट्रस्ट बोर्ड का गठन
विधान में ट्रस्ट बोर्ड के गठन एवं ट्रस्टियों के चुनाव का प्रावधान था। उसके अनुसार 16 अगस्त 1914 को ट्रस्ट बोर्ड का गठन हुआ जिसके निम्नलिखित सदस्य थे –
- चैनरूप संपतरामजी दुगड़ (सरदारशहर)
- तेजपाल वृद्धिचंदजी सुराणा (चूरू)
- श्रीचंद गणेशदासजी गधैया (सरदारशहर)
- बींजराज हुकमचंदजी बैद (रतनगढ़)
- जेसराज जैचंदलालजी बैद (राजलदेसर)
- रतनचंद शोभाचंदजी
- हजारीमल मुल्तानमलजी
इसका कार्य संघीय प्रयोजन हेतु समाज से लिए जाने वाले चंदे के समुचित उपयोग व पारदर्शिता पर ध्यान रखना था।
पुस्तकालय का प्रारम्भ
30 अगस्त 1914 को सभा का ऑफिस 71, क्लाइव स्ट्रीट में आते ही विद्यालय व पुस्तकालय की योजना बनने लगी। 4 अक्टूबर 1914 की मीटिंग में पुस्तकालय प्रारंभ करने का निर्णय लिया गया। मीटिंग में पुस्तकालय का दायित्व रायचंदजी सुराणा (चूरू) को सौंपा गया।
पहला वार्षिक अधिवेशन
24 मई 1914 को कलकत्ता में तेरापंथी सभा का पहला वार्षिक अधिवेशन हुआ। चुनाव विधिवत तथा सर्वसम्मति से हुआ। सभा की कार्यकारिणी में अधिक से अधिक गाँवों के लोगों का प्रतिनिधित्व हो, ऐसा निर्णय लिया गया। सभा का व्यापक स्वरूप पहले वर्ष में ही बन गया था। कलकत्ता में उस समय जितने गावों के लोग रहते थे सभी गावों को प्रतिनिधित्व दिया गया।
निम्नलिखित पदाधिकारियों का चयन किया गया:-
अध्यक्ष – रिद्धकरण सुराणा,
उपाध्यक्ष – अमोलकचंदजी बेंगानी,
मंत्री – केशरीचंदजी कोठारी,
उपमंत्री – छोगमलजी चौपड़ा,
कोषाध्यक्ष - श्रीचंदजी गणेशदासजी गधैया,
हिसाब परीक्षक – गुलाबचंदजी भैरुदान।
पदाधिकारियों के अतिरिक्त कार्यकारिणी के 77 सदस्य चुने गए।
तीस क्षेत्रों के 77 सदस्यों का कार्यकारिणी में लेना इस बात का साक्षी है कि सभा को व्यापक आधार प्रदान करने का कार्यकर्ताओं के मन में सार्थक चिंतन रहा होगा।
विवरणों की अनुपलब्धता
21 जनवरी 1917 से लेकर 21 अप्रैल 1938 तक की अवधि में महासभा द्वारा किये गए क्रियाकलापों का विवरण उपलब्ध नहीं है क्योंकि इस बीच जो बैठकें हुईं उनके कार्यवृत उपलब्ध नहीं हैं। इसकी वजह यह थी की द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान कलकत्ता से महासभा की मिनट बुक, गजट, पत्राचार आदि सामग्री गंगाशहर-बीकानेर भेज दी गयी। विश्वयुद्ध के समाप्त होने के बाद सारी सामग्री जब कलकत्ता भेजी गयी तो वे कहीं गुम हो गईं। अतः लिखित सामग्री के आभाव में उस अवधि का इतिहास नहीं लिखा जा सका। उसके बाद 21 अप्रैल 1938 से मिनट बुक के आधार पर इतिहास का लेखन प्रारंभ हुआ।
प्रथम वर्किंग कमिटी का गठन - मध्य काल (1940-2000)
वर्किंग कमिटी का पहली बार गठन 16.01.1940 में हुआ, जिसमें 21 सदस्य नियुक्त हुए।
सभा की यह पहली कार्यसमिति थी जिसके सदस्य थे –
- ईसरचंदजी चौपड़ा
- चांदमलजी बांठिया
- मोहनलालजी कठोतिया
- श्रीचंद गणेशदासजी गधैया
- छोगमलजी चौपड़ा
- श्रीचंदजी रामपुरिया
- मोतीलालजी नाहटा
- मोहनलालजी बेंगाणी
- वृद्धिचंदजी गोठी
- सागरमलजी बोथरा
- माणकचंदजी सेठिया
- छोगमलजी रावतमलजी
- हरखचंद पूरणमलजी
- मन्नालालजी हणुमतमलजी
- कुम्भकरणजी नथमलजी
- सूरजमलजी गोठी
- गुलाबचंद धनराजजी
- बनेचंदजी शोभाचंदजी
- जेसराजजी जैचंदलालजी
- सोहनलालजी सुराणा
- छगनमल तोलारामजी
पुस्तक संगरक्षक समिति के सात सदस्य चुने गए –
- मोहनलालजी बेंगाणी
- सागरमलजी सेठिया
- छोगमलजी चोपड़ा
- माणकचंदजी सेठिया
- मोतीलालजी नाहटा
- चाँदमलजी बांठिया
- श्रीचंदजी रामपुरिया
संविधान निर्माण और पंजीकरण
19.10.1946 की बैठक में एक समिति का गठन किया गया जिसे यह दायित्व सौंपा गया कि तेरापंथी समुदाय के हितों की रक्षा के लिए संविधान निर्मात्री सभा का गठन करे। तदनुसार समिति का गठन किया गया और उसने संघ के नियम आदि का निर्माण किया।
उसके बाद सं 1965 में नियमावली की संशोधित ‘मेमोरंडम ऑफ एसोसिएशन’ की प्रति प्रस्तुत की गई जिसे सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया। फिर सोसायटीज एक्ट के अनुसार संशोधित नियमावली रजिस्ट्रार से स्वीकृत हो गई।
निजी भवन में पहली मीटिंग
02.03.1950 की कार्यकारिणी की मीटिंग 3, पोर्चुगीज चर्च स्ट्रीट में हुई। सभा के अपने निजी भवन में यह पहली मीटिंग हुई। सभा स्थापित होने के सैंतीस वर्ष बाद कार्यकर्ताओं का स्वप्न साकार हुआ।
आगम प्रकाशन का निर्णय
13.11.1955 की मीटिंग में लिए गए निर्णय के अनुसार आचार्य तुलसी के वाचना प्रमुखत्व में तथा मुनिश्री नथमलजी की देखरेख में हो रहे आगमों के अनुवाद को महासभा द्वारा प्रकाशित करने का कार्य प्रारम्भ हुआ।
महासभा की नियमावली (‘मेमोरंडम ऑफ एसोसिएशन’) का संशोधन
सन् 1965 में सोसायटीज एक्ट के अनुसार नियमावली (‘मेमोरंडम ऑफ एसोसिएशन’) को संशोधित किया गया जिसे रजिस्ट्रार द्वारा स्वीकृति प्रदान की गई। इसके साथ ही मेम्बरशिप फॉर्म भी छपाया गया। मेमोरंडम को छपाकर निःशुल्क सदस्यों को भेजा गया।
महिला जागरण कार्यक्रम
14.10.1965 की मीटिंग में महासभा के अंतर्गत महिला विभाग तत्काल खोलने का निर्णय लिया गया। इसकी संयोजिका श्रीमती फूलकुमारी सेठिया को चुना गया। महासभा के उद्देश्यों के अनुरूप इस विभाग को महिला जागरण का कार्य सौंपा गया।
जैन विश्व भारती के निर्माण की योजना
29.06.1968 की मीटिंग में महासभा के अंतर्गत जैन विश्व भारती विभाग को खोलने की एक योजना बनायी गई।
हाई कोर्ट के आदेश से चुनाव संपन्न
उच्च न्यायालय के आदेशानुसार धरमचंदजी चौपड़ा की देखरेख में 27 नवम्बर 1978 को महासभा के पदाधिकारियों एवं सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों का चुनाव संपन्न हुआ। महामंत्री हंसराजजी सेठिया व कोषाध्यक्ष पन्नालाल सागरमल फर्म को बनाया गया।
महासभा भवन निर्माण कमेटी गठित
30.03.1980 को भवन निर्माण हेतु उपसमिति का पुनर्गठन हुआ। खेमचंदजी सेठिया को संयोजक चुना गया। अध्यक्ष, मंत्री पदेन सदस्य थे, दो सदस्यों के चयन का भार संयोजक को दिया गया।
योगक्षेम वर्ष में महासभा द्वारा दो शिविरों का आयोजन
योगक्षेम वर्ष में ज्ञानशाला प्रशिक्षक प्रशिक्षण शिविर, 18 जून से 24 जून 89 तक, कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर 5 नवम्बर से 11 नवम्बर 1989 तक लगाया गया। कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर के संयोजक के रूप में महेन्द्रजी कर्णावट को सर्वसम्मति से नियुक्त किया गया।
‘प्रधानमंत्री’ की जगह ‘महामंत्री’ शब्द का प्रयोग
16.03.1991 की मीटिंग में यह निर्णय किया गया कि महासभा में प्रयुक्त प्रधानमंत्री शब्द कि जगह महामंत्री शब्द का प्रयोग किया जाएगा।
महासभा का हीरक जयंती समारोह
1988 में महासभा की स्थापना के 75 वर्ष पूरे होने पर उसकी हीरक जयंती मनाई गई। कलकत्ता में कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी सम्वत् 2045 को 75वें वर्ष में प्रवेश के उपलक्ष में महासभा द्वारा आयोजित विशेष कार्यक्रम के आलावा छापर में मर्यादा महोत्सव के अवसर पर परमाराध्य आचार्यप्रवर श्री तुलसी की सन्निधि में महासभा की हीरक जयंती का एक विशाल एवं भव्य आयोजन हुआ।
योगक्षेम वर्ष में अनेक प्रकार के प्रशिक्षणों का क्रम चला। उनमें एक महत्वपूर्ण प्रशिक्षण था समाज के कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करना। प्रज्ञापर्व समारोह समिति द्वारा यह दायित्व महासभा को सौंपा गया।
महासभा ने 23 से 25 नवम्बर 1993 तक राजलदेसर में त्रिदिवसीय कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया।
आधुनिक काल (2000 से अभी तक)
कालजयी महर्षि अभिवंदना समारोह
आचार्य श्री महाप्रज्ञ के द्वारा तेरापंथ की आचार्य परम्परा में सर्वाधिक संयम पर्याय और आयुष्य प्राप्ति के नव-इतिहास सृजन के अवसर पर कालजयी महर्षि अभिवंदना समारोह का वृहद् आयोजन 16 फरवरी 2003 को बंबई-कांदिवली में किया गया। इस महनीय कार्यक्रम को आयोजित करने का सौभाग्य महासभा को प्राप्त हुआ। महासभा की ओर से अनेक वरिष्ठजनों द्वारा हस्ताक्षरित बैनर आचार्यप्रवर को भेंट किया गया। इस अवसर पर ‘अभ्युदय’ का विशेषांक एवं जैन भारती का विशेष अंक प्रकाशित किया गया।
भिक्षु निर्वाण द्विशताब्दी समारोह
तेरापंथ के आद्यप्रणेता आचार्य भिक्षु के निर्वाण की द्विशताब्दी समारोह के वर्षव्यापी कार्यक्रम के आयोजन पक्ष, साहित्य प्रकाशन एवं प्रचार-प्रसार का दायित्व महासभा को प्रदान किया गया। इसका मुख्य समारोह पूज्य प्रवर की सन्निधि में दिनांक 8 सितम्बर 2003 को सूरत में आयोजित हुआ। इस अवसर पर विशेष रूप से तैयार किये फोल्डर एवं बैनर का लोकार्पण हुआ।
सिरियारी चातुर्मास के प्रारंभिक चरण में आयोजन पक्ष का दायित्व भी महासभा द्वारा निर्वहन किया गया। इस क्रम में युगप्रधान आचार्य श्री महाप्रज्ञजी के ससंघ चातुर्मासिक प्रवेश के अवसर पर 28 जून को भव्य स्वागत समारोह आयोजित किया गया।
आचार्य भिक्षु डाक टिकट
भिक्षु निर्वाण द्विशताब्दी के परिप्रेक्ष्य में भारत सरकार द्वारा ‘आचार्य भिक्षु’ डाक टिकट रु. 5/- मूल्य का जारी किया गया। यह समाज एवं संघ के लिए विशेष गौरव की बात है। महासभा द्वारा प्रसारण हेतु 3 लाख डाक टिकटें क्रय की गईं एवं देश भर में उनको प्रसारित किया गया।
डाक्युमेंट्री फिल्म
निर्वाण द्विशताब्दी के मुख्य आयोजन के अवसर पर महासभा द्वारा आचार्य भिक्षु पर डाक्युमेंट्री फिल्म ‘ज्योतिर्मय’ तैयार कराई गई जिसका प्रदर्शन सिरियारी में विशाल परिषद के मध्य किया गया एवं मित्र परिषद द्वारा संचालित प्रेरणा प्राथेय में संस्कार चैनल के माध्यम से व्यापक रूप से प्रसारित किया गया।
अहिंसा यात्रा में सहभागिता
महासभा के गौरवशाली इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ा अहिंसा यात्रा में सहभागिता के द्वारा। 16 मई से 5 जून 2004 तक 21 दिवसीय रास्ते की सेवा में महासभा के वर्तमान एवं पूर्व पदाधिकारी, महासभा की टीम के सदस्य, वरिष्ठ कार्यकर्तागण एवं परिवारजन सम्मिलित हुए।
साहित्य विक्रय केन्द्र
महासभा के अंतर्गत हजारीमल श्यामसुखा चेरिटेबल ट्रस्ट के संचालाक्त्व में एक साहित्य विक्रय केंद्र 2003 में प्रारंभ किया गया।
विशेष सहायता
सुनामी के नाम से आए समुद्री भूकंप में आपदाग्रस्त विशेषतः दक्षिण भारत के लोगों की सहायता हेतु तेरापंथ समाज की ओर से रु. 51 लाख की सहयोग राशि प्रधानमंत्री राष्ट्रीय सहायता कोष में अनुदानस्वरूप प्रदान की गई। इसका नियोजन महासभा एवं जय तुलसी फाउन्डेशन द्वारा संयुक्त रूप से किया गया।
महाविद्यालय को सहयोग
तेरापंथ विकास परिषद के वार्षिक अधिवेशन (2004) में हुए चिंतन के अनुसार महासभा द्वारा तीन वर्षों के लिए आचार्यश्री तुलसी अमृत महाविद्यालय, गंगापुर के सम्यक संचालन के लिए सहभागिता का दायित्व लिया गया।
फ्युरेक को सहयोग
फ्युरेक संसथान (FUREC: Foundation of Unity of Religious and Enlightened Citizenship) के संचालन में सहयोग हेतु महासभा को सन् 2005 में दायित्व प्रदान किया गया। महासभा इस कार्य में संलग्न है।
महासभा लोगो का कॉपीराइट पंजीकरण
भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के माध्यमिक एवं उच्चतर विभाग के अंतर्गत कॉपीराइट कार्यालय के द्वारा महासभा के लोगो के कॉपीराइट के पंजीकरण हेतु स्वीकृति पत्र प्राप्त हो गया है।
महासभा की स्थापना व आचार्य तुलसी का जन्म
यह भी संयोग ही था कि जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा का निर्माण और युगप्रधान आचार्यश्री तुलसी का जन्म लगभग एक साथ हुआ। तेरापंथ के अभ्युदय में दोनों का ऐतिहासिक योगदान रहा। विकास का बीजवपन पूज्य कालुगणी के शासन काल में हो चुका था, किन्तु उसका पल्लवन आचार्य तुलसी के शासनकाल में हुआ।
9001:2000 प्रमाण पत्र
तेरापंथ के दशमाधिशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री महाप्रज्ञ के शासनकाल में महासभा की छवि दूरदर्शी सोच व प्रगतिमूलक उपक्रमों की देन वाली बनी। महासभा की अपनी कार्यप्रणाली, सुव्यवस्थित नेटवर्क व कार्य संपादन की कुशलता के आधार पर इसे प्रतिष्ठित आईएसओ 9001:2000 प्रमाणपत्र प्राप्त हो चुका है।
संघ की शीर्षस्थ संस्था के रूप में कार्य करते हुए जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा ने गौरवमय इतिहास निर्मित किया है। युग के अनुरूप समय-समय पर महासभा के पदाधिकारियों ने अनेक प्रवृत्तियों की शुरुआत की और समय के साथ वे कृतकृत्य कर दी गईं। कई प्रवृत्तियों का संपादन बहुत ही योजनाबद्ध, विधिवत एवं सुव्यवस्थित चला।